अगम अखिलेश
अगम अखिलेश हे स्वामी, सदा मैं सिर नवाता हूँ
तुम्हारे पाद-पदमों में मैं अपना सिर झुकाता हूँ........
ये नदियाँ ये समन्दर हैं ये घाटी और उपवन हैं
तुम्हीं ने चाँद, सूरज को चमकना यूँ सिखाया है
अगम...............................
कभी तू राम बन जाता कभी अल्लाह कहलाता
ईशा के रूप में तूने हमें हँसना सिखाया है
अगम अखिलेश.......................
ये मंदिर और मस्जिद है ये गिरिजा और गुरुद्वारा
सभी में तेरे रूपों का ये दर्शन रोज होता है
अगम अखिलेख हे स्वामी
इतनी शक्ति हमें देना
इतनी शक्ति देना हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चलें नेक रास्ते पे, हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना।
दूर अज्ञान के हो अंधेरे, तू हमें ज्ञान की रोशनी दे,
हर बुराई से बचते रहे हम, जितनी भी दे, भली जिंदगी दे।
वैर हो न किसी का किसी से, भावना मन में बदले की हो ना।
हम चलें नेक रास्ते पे, हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना।
हम ना सोचें, हमें क्या मिला है, हम ये सोचें किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों को बाँटे, सभी को, सबका जीवन ही बन जाये मधुवन।
अपनी करूण का जल तू बहा दे, कर दे पावन हर एक मन का कोना
हम चलें नेक रास्ते पे, हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना।
हर तरफ जुल्म है बेबसी है, सहमा-सहमा सा हर आदमी है।
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये, जाने कैसे ये धरती थमी है।
बोझ ममता का तू ये उठाले, तेरी रचना का यूं अंत हो ना
हम चलें नेक रास्ते पे, हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना।